जब उन्होंने बायोफिट के परिणामों के बारे में सुना, तो उन्होंने अपने चाय बागान में बायोफिट प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। चाय की कलियों को बारीकी से तोड़ने के 1 दिन बाद उन्होंने बायोफिट व्रैप-अप, बायो-99 का छिड़काव किया। नई पत्तियों और कलियों के उगने के 67 दिनों बाद उन्होंने बायोफिट स्टिमरिच और बायो-99 का भी छिड़काव किया। पत्तियों के 2-3 इंच आकार का हो जाने पर उन्होंने बायोफिट NPK और बायोफिट SHET का छिड़काव किया।
बायोफिट का इस्तेमाल शुरू करने के पहले वहाँ यूरिया का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता था। हालाँकि बायोफिट को धन्यवाद, जिससे यूरिया की मात्रा के लिए उनकी ज़रूरत काफी हद तक कम हो गई।
उन्होंने पत्तियों की संख्या में बढ़त देखी; पत्तियाँ पहले की तुलना में ज़्यादा हरी और सेहतमंद थीं। उसकी गुणवत्ता में सुधार हुआ साथ ही बाज़ार में इसकी कीमत भी बढ़ी।
उनके बागान में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करने के बाद मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ साथ ही पौधों को होने वाला नुकसान भी कम हुआ। श्री बरुआ बायोफिट प्रोडक्ट्स के परिणामों से खुश हैं। अब वह डिब्रूगढ़ के दूसरे चाय किसानों को भी बायोफिट प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल की सलाह देते हैं।