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श्री. जयंत बरुआ
डिब्रूगढ़, असम.
 
फसल का प्रकार : चाय
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श्री जयंत बरुआ अपने चाय बगान में कीटों से बचाव के लिए और पत्तियों के बेहतर विकास के लिए भारी मात्रा में रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे थे। इससे आखिर उनकी खेती की लागत में बढ़ोत्तरी हुई, हालाँकि उपज में कोई आशाजनक बढ़त नहीं हुई, और तो और पत्तियाँ भी छोटी ही थीं। इसका असर उनकी चाय की पत्तियों के बाज़ार भाव में भी नज़र आया।
जब उन्होंने बायोफिट के परिणामों के बारे में सुना, तो उन्होंने अपने चाय बागान में बायोफिट प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। चाय की कलियों को बारीकी से तोड़ने के 1 दिन बाद उन्होंने बायोफिट व्रैप-अप, बायो-99 का छिड़काव किया। नई पत्तियों और कलियों के उगने के 67 दिनों बाद उन्होंने बायोफिट स्टिमरिच और बायो-99 का भी छिड़काव किया। पत्तियों के 2-3 इंच आकार का हो जाने पर उन्होंने बायोफिट NPK और बायोफिट SHET का छिड़काव किया।

बायोफिट का इस्तेमाल शुरू करने के पहले वहाँ यूरिया का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता था। हालाँकि बायोफिट को धन्यवाद, जिससे यूरिया की मात्रा के लिए उनकी ज़रूरत काफी हद तक कम हो गई।
बायोफिट प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल के पहले और बाद में-
पहले का चाय बागान:
  • प्रति एकड़ पर लागत: रु. 10,000 से 12,000
  • औसत पैदावार: 25 से 28 क्विंटल
  • बिक्री दर: रु. 18 से रु. 20 प्रति किलो
  • प्रति एकड़ शुद्ध लाभ: रु. 35,000 से रु. 44,000
बायोफिट का चाय बागान:
  • प्रति एकड़ पर लागत: रु. 7,000 से 8,000
  • औसत पैदावार: 32 से 35 क्विंटल
  • बिक्री दर: रु. 18 से रु. 20 प्रति किलो
  • प्रति एकड़ शुद्ध लाभ: रु. 50,600 से रु. 62,000
उन्होंने पत्तियों की संख्या में बढ़त देखी; पत्तियाँ पहले की तुलना में ज़्यादा हरी और सेहतमंद थीं। उसकी गुणवत्ता में सुधार हुआ साथ ही बाज़ार में इसकी कीमत भी बढ़ी।

उनके बागान में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करने के बाद मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ साथ ही पौधों को होने वाला नुकसान भी कम हुआ। श्री बरुआ बायोफिट प्रोडक्ट्स के परिणामों से खुश हैं। अब वह डिब्रूगढ़ के दूसरे चाय किसानों को भी बायोफिट प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल की सलाह देते हैं।