श्री पठान अपनी 1 से 1.5 एकड़ ज़मीन पर कैश क्रॉप्स/नक़दी फसल के रूप में सोयाबीन JS335 की खेती कर रहे हैं। इस पर प्रति एकड़ 12,000 से 13,000 रूपये का खर्च होता था। इससे उन्हें औसतन लगभग 8 से 8.5 क्विंटल पैदावार प्राप्त होती थी।
हालाँकि, वह फली को भीतर से खोखला करने वाले विभिन्न कीड़ों और जाने-माने ताम्बेरा रोग से परेशान थे। इससे उनकी फसल की पैदावार हर साल कम हो रही थी। सोयाबीन के दानों का आकार सिकुड़ता जा रहा था और उन पर दाग-धब्बे भी पड़ने लगे थे। इसके लिए बाज़ार में उन्हें प्रति क्विंटल 3,800 से 4,000 रुपये तक की कीमत मिलती थी।
अपनी मौजूदा खरीफ फसलों के दौरान श्री पठान ने पारंपरिक कृषि पद्धतियों के साथ-साथ बायोफिट प्रोडक्ट्स का उपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने फसलों के प्रारंभिक विकास चरणों के दौरान 3 दिनों के लिए बायोफिट स्टिमरिच, बायो-99 और बायोफिट SHET प्रोडक्ट्स का छिड़काव किया। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें फसल के विकास में अंतर नज़र आने लगा
फसलों में अधिक शाखाएँ, पत्तियाँ और फूल थे। उन्होंने फसल की फ्लोवेरिंग स्टेज के दौरान फसलों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए 20 दिनों के अंतराल से 2 बार बायोफिट व्रैप-अप का छिड़काव किया। इससे उन्हें ताम्बेरा रोग को रोकने में मदद मिली। मौजूदा सोयाबीन की फलियाँ बड़े दानों से पूरी भरी हुई है। उन्होंने इसी ज़मीन से लगभग 10.5 क्विंटल सोयाबीन फसल की पैदावार प्राप्त की है।